25 Oct 2018

Independent House Construction Cost in Lucknow


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Cost Of Independent House Construction
Cost of constructing a Independent House in 2018 comes close to Rs.1450/- to Rs.1550/- Per Sq Ft. This includes material, Labour charges and consultants fees. There could be variations on the materials part.
Construction Cost Of Independent House
Independent Home construction cost per Sft mostly depends on the finishing materials materials used, since the concrete structure price is usually fixed and cannot be altered. Range is Rs.1450 to Rs.1550 Per Sq Ft.
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Duplex House Construction Cost

Cost of constructing a Duplex in 2018 comes close to Rs.1450 to Rs.1550 per Sq Ft. This includes material, Labour charges and consultants fees. There could be variations on the materials part.
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Low Cost Independent House Construction
Budget or the value of Low Cost Independent Home construction project depends on three major factors like Plan, Materials used and your contractors charges. Fully furnished Home may cost Rs.1400 to Rs.1450 per Sq Ft in 2018.
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With increased requirements of family members and more need of trendy living, many customers who are owners of independent houses are planning to add more spacious rooms to their residences. Having an additional rooms actually increases the space of the house and also provides the customers with more facilities and comfortable living. However, the customers get worried about the cost information and the time taken for adding rooms or renovating their Independent House
 We proud to provide exclusive Independent House construction services to your house with an ample budget and great quality. The average cost of construction per square feet in Independent House construction is around 1100 INR. Hence, a 1500 square feet area can be constructed at a cost of Rs.24,00,000. This budget can vary based on additional requirements and also brings more facilities to your new rooms. We also provide leisure area design for Independent House as it can also be used as a dual sit out area or a partial terrace.
Suresh Pandey
Contact -8318192212,9058913568
Trio Vision Construction And Interior Company.
Office Add- B 85 Indira nagar, near Bhootnath market Lucknow.

12 Oct 2018

बेडरूम में वास्तु लाए खुशिओं की बहार, आप भी करें ट्राई

 यदि आपकी अपने जीवन साथी से बनती नही है। दिन रात घर में कलह और झगड़े ही होते रहते है तो इसका एक कारण आपके बेडरूम का वास्तु दोष हो सकता है। कैसे आप अपने बेडरूम के सामान में वास्तु के अनुसार थोडा फेरबदल करके अपने घर में खुशी की बहार ला सकते है।

वास्तुशास्त्र को बहुत से लोग टोना-टोटका या धार्मिक आस्था से जोड़ते है, लेकिन इसका किसी भी प्रकार की पूजा-पाठ या तन्त्र-मन्त्र से कोई लेना देना नहीं है। वास्तु में दिशाओं का महत्व होता है। किसी दिशा से आने वाली ऊर्जा आपको किस प्रकार से फायदा पहुंचा सकती है, यह शास्त्र इसी पर निर्भर है। वास्तु में हर जगह और कमरे के लिए एक निश्चित स्थान बताया गया है। बेडरूम रूम घर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। आइए आपको बताते है कि आपके बेडरूम का वास्तु कैसा होना चाहिए ताकि आपके जीवन  में सदा खुशियों का आगमन होता रहे।

बेडरूम की सबसे इर्म्पोटेंट चीज है पलंग। वास्तु के अनुसार पलंग दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। पलंग को दक्षिण दिशा की दीवार के साथ होना चाहिए। सोते समय सिर दक्षिण की ओर और पैर उत्तर में होने चाहिए। ध्यान रहे पलंग दीवार के एकदम बीच में होना चाहिए। यही पलंग की बेडरूम में एकदम सही दिशा है।

पलंग के बाद बारी आती है स्टडी टेबल की आजकल अलग से स्टडी रूम बनाने का चलन लगभग खत्म हो गया है। अब तो बेडरूम में ही स्टडी कॉर्नर बनाया जाने लगा है। वास्तु के अनुसार स्टडी टेबल पूर्व दिशा में रखें और ध्यान रखें की पढ़ते समय आपका चेहरा पूर्व की तरफ ही होना चाहिए। दक्षिण की ओर टेबल कभी भी न रखें यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

स्टडी टेबल के बाद बात करते हैं शोपीस और पेटिंग्स की। वास्तु के अनुसार बेडरूम में रामायण, महाभारत और किसी भी प्रकार के लड़ाई के दृश्य, ऐन्द्रजालिक पेंटिंग, पत्थर और लकड़ी की बनी राक्षसों की मूर्तियां, रोते हुए व्यक्ति की मूर्ति, जानवरो जैसे सांप, गिद्व, उल्लू, कौवा, बाज आदि के चित्र भी नहीं लगाने चाहिएं। बेडरूम में आप फूलों, झरनों, प्रकृति के मनोरम दृश्य की पेंटिंग्स लगा सकते हैं। वास्तु के अनुसार, पेंटिंग्स की सही दिशा उत्तर दिशा है। दीवार घड़ी भी हमेशा उत्तर दिशा की दीवार पर ही लगानी चाहिए।

 वास्तु के अनुसार मिरर या ड्रेसिंग टेबल को बेड के सामने नहीं रखना चाहिए। मिरर की बेडरूम में सही दिशा है उत्तर-पूर्व, इससे घर के सदस्यों के मान सम्मान में बढोतरी होती है। इसके अलावा किसी दूसरी दिशा में मिरर का लगाना अशुभ माना जाता है।

बेडरूम के दरवाजे की बात करें, तो वास्तु के अनुसार दरवाजा कभी भी बेड के सामने नहीं खुलना चाहिए। दरवाजे हमेशा अंदर की ओर ही खुलने चाहिए। इससे पॉजीटीव एनर्जी घर में आती है। दरवाजा हमेशा पूर्व में होना चाहिए। वास्तु में गोल शेप वाले दरवाजों को अशुभ माना जाता है। दरवाजे हमेशा चकोर होने चाहिएं।

दरवाजे के साथ-साथ खिडकियां भी पूर्व की दिशा में होनी चाहिए। यदि आपके बेडरूम में खिडकियां दक्षिण या पश्चिम दिशा में हो तो उन्हे पर्दों से ढककर रखना चाहिए।

आजकल अटैच टॉयलेट का चलन है। लेकिन वास्तु की माने तो बेडरूम में टॉयलेट का कोई भी स्थान नहीं है। फिर भी यदि अटैच टॉयलेट बनवाना ही है तो उसकी दिशा दक्षिण में होनी चाहिए।

वास्तु के अनुसार, कमरे की पूर्व और उत्तर की दिशा को खाली छोड़ना चाहिए। इन दिशाओं से आने वाली हवाओं और सूर्य की रोशनी में किसी भी प्रकार की कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए इसीलिए इन दिशाओं में कोई भी भारी सामान न रखें। इन दोनों दिशाओं से ही रूम में पॉजीटीव एनर्जी आती है। भारी सामान जैसे सोफा, अलमारी आदि को आप दक्षिण और पश्चिम की दिशा में रख सकते है।

वैसे तो कहते है कि जो होना होता है वह होकर ही रहता है लेकिन यदि हम अपने बेडरूम में वास्तु के अनुसार फेरबदल करे तो कुछ हद तक आने वाली कठिनाईओं और परेशानियों से बच सकते है।

घर बनाने के लिए वास्तु टिप्स

खुशहाल जीवन जीने के लिए व्यक्ति की चाहत होती है अपना घर। वह अपना पूरा जीवन इस संघर्ष में ही निकाल देता है कि उसके सर पर एक छत आ जाए और बिना छत के तो रंग बिरंगी दुनिया भी वीरानी सी लगती है। जब आप किसी घर को खरीदने के लिए इतनी जद्दोहद करते हैं तो आप पूरी कोशिश करते हैं कि हम जो अपना सपनों का घर बना रहे हैं वह सभी तरह के दोषों से रहित हो।

इन दोषों को दूर करने का काम करता है वास्तुशास्त्र। इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं घर बनवाने के लिए वास्तु टिप्स, जिनका आपको घर बनवाते समय ध्यान रखना होगा।

दिशाओं का रखें ध्यानः- चार दिशाएं उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण, इन चार दिशाओं के आधार पर ही घर की बनावट तय होती है। वास्तु शास्त्र का मानना है कि घर का मुख्य द्वारा यदि पूर्व या उत्तर दिशा में हो तो सर्वोत्तम माना होत, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि यदि आपका मुख्य द्वार किसी और दिशा में हो तो कोई समस्या हो सकती है।

शौचालय पूजा घऱ के पास ना होः- घर बनवाते समय आपको ध्यान रखना होगा कि शौचालय पूजा घर के आस-पास ना हो। इसके अलावा पूजा घर में प्रतिमा स्थापित नहीं होनी चाहिए। आप चाहें तो छोटी मूर्तियां व पोस्टर रख सकते हैं।

टैंक उत्तर या पूर्व में होः- मकान बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी प्रकार का भूमिगत टैंक, फ्रैश वॉटर टैंक, बोरिंग, कुआं, सैप्टिक टैंक, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए।

उत्तर दिशा में खुली जगह रखें- जब आप घर बनवा रहे हैं तब ध्यान रखें कि पश्चिम की तुलना में पूर्व दिशा में और दक्षिण की तुलना में उत्तर दिशा में ज्यादा खुली जगह होनी चाहिए।

भवन के इशान का रखे ध्यानः- भवन का ईशान यानी उत्तर पूर्व कोण घटा, कटा, गोल अथवा ऊंचा नहीं होना चाहिए। इसके अलावा दक्षिण पश्चिम कोण बढ़ा हुआ अथवा नीचा होना चाहिए।

घऱ की ऊंचाईः- यह ध्यान रखें कि घर की ऊंचाई जमीन से एक से दो फीट ऊंची और घर में फर्श समतल हो। यदि साफ-सफाई के लिए ढाल देना चाहें तो उत्तर, पूर्व दिशा या इशान कोण की ओर ढाल दे सकते हैं। पानी के निकास के लिए पश्चिम मुखी घर में यह दिशा शुभ होती है।

पूजा घर और बेडरूमः- पूजा घर और बेडरूम एक ही कमरे में नहीं होने चाहिए।

सीढ़ियों की संख्या विषमः- वास्तु शास्त्र में माना गया है कि सीढ़ी के पायदानों की संख्या विषम 21, 23, 25 होनी चाहिए।

घऱ में कबाड़ न रखें:- घऱ में कबाड़ का होना शनिचर की निशानी होता है। इसलिए कहते हैं कि घऱ में कबाड़ नहीं होना चाहिए। यदि घर में कबाड़ अधिक होता है तो कोई ना कोई समस्या घर में आती रहती है।

कमरे की लाइट्सः- कमरे की लाइट्स पूर्व या उत्तर दिशा में लगी होनी चाहिए।

खिड़कियां उत्तर या पूर्व में होः- घर के ज्यादातर कमरों की खिड़कियां और दरवाजे उत्तर या पूर्व दिशा में खुलने चाहिए।

मुख्य द्वार दक्षिणमुखी ना होः- घर का मुख्य दरवाजा दक्षिणमुखी नहीं होना चाहिए। अगर मजबूरी में आपको दक्षिणमुखी दरवाजा बनाना पड़ गया है तो दरवाजे के सामने एक बड़ा सा आइना लगा दें।

ताजमहल का शो पीस ना रखें:- ताजमहल एक मकबरा है इसलिए न तो इसकी तस्वीर घर में लगानी चाहिए और ना ही इसका कोई शो पीस घर में रखना चाहिए।

4 Oct 2018

छत पर बगीचा बनाकर बनाये अपने घर में हरियाली और खुशहाली | Terrace Garden Tips

Terrace Garden की ख्वाहिश रखने वाले कम नही है | यह मौसम उनकी इस इच्छा को पुरी करने के लिए अनुकूल है | छत पर हरियाली लाने के इंतजामो से जुडी कुछ बातो को का ध्यान रखे और फिर देखे कि छत पर बसी बगिया कैसे खिलखिलाती है |

सबसे पहले Water Proofing

Garden तैयार करने से पहले पुरी छत पर Water Proofing बेहद जरुरी है | इसके बिना यह हरियाली आपको सुकून नही पहुचा सकती क्योंकि लगातार बनी रहने वाली नमी नीचे की दीवारों पर फ़ैल सकती है और उन्हें कमजोर बना सकती है |

Perfect मौसम का इन्तजार

छत पर Garden बनाने की तैयारी करने का यह सबसे अच्छा मौसम है | बरसाती मौसम में मिटटी फटाफट सेटल हो जाती है और पौधों को भी तेजी से बढने लायक माहौल मिलता है |

बची-कुची चीजो की खाद

आप Kitchen की बची-कुची चीजो का प्रयोग कर इस गार्डन की खाद तैयार करने की कोशिश करे | मिटटी के बारे में किसी जानकार से सलाह ले और फिर Kitchen Waste मिलाते रहे |

वजन का ध्यान

छत पर वजन बढाना किसी भी तरह की समझदारी का काम नही है | Plastic Bags का प्रयोग करे तथा सीमेंट के भारी-भारी गमले रखने से बचे | इस तरह आप काफी खर्चा भे कर लेंगे |

ये लगाये छत पर

आप छत पर टमाटर ,भिंडी , बैंगन , पालक इत्यादि आसानी से लगा सकते है | यह छत के आकार पर निर्भर करता है कि आपको क्या क्या मिलेगा | कुछ लोग तो संतरा , अंगूर , नीम्बू और केला भी लगा लेते है | आप Hybrid बीज लगा सकते है ये Terrace Garden के लिए काफी फायदेमंद होते है तथा बेहद आसानी से मिल जाते है |

दिन में दो बार पानी

बरसात की बात तो जाने दे , परन्तु छत पर रखे पौधों को आमतौर पर दिन में दो बार पानी देने की जरूरत पडती है | वे सब्जिया या फल नही लगाये जाने चाहिए , जिन्हें ज्यादा पानी की जरूरत पडती है | इससे घर में पानी की खपत बढ़ेगी | Garden को सेट करने से पहले यह तय क्र कि आप इतना पानी खर्च कर पायेंगे या नही |

रखे हर पौधे का ख्याल

Terrace पर मौजूद हर पौधे का ख्याल रखना आपकी जिम्मेदारी है इसलिए उसकी जरूरत और रखने की जगह तक की जानकारी आपको होने चाहिए | जगह के चुनाव से मतलब उसे मिलने वाली सूरज की रोशनी से है | कुछ पौधे ऐसे होते है जिन्हें केवल पचास फीसदी धुप की जरूरत होती है जबकि गुलाब जैसे पौधों को 75 प्रतिशत धुप की जरूरत होती है | इनके लिए जरुरी छाँव का इंतजाम भी आपको ही करना है |

कई फायदे

छत पर बगीचा होने का सबसे बड़ा फायदा रो यह है कि घर के अंदर खासी ठंडक बनी रहती है | जब इसमें सब्जियाँ उगने लगेगी तो आसानी के साथ हफ्ते में चार दिन का कोटा यहाँ से पूरा किया जा सकता है | पक्षियों का आना-जाना बढ़ेगा और तितिलिया मंडराने लगेगी , कुल मिलाकर जीवंत माहौल पैदा होगा |


3 Oct 2018

वास्तु के मुताबिक अपने घर के लिए चुनें सही रंग, खुल जाएगी किस्मत

यह बात साबित हो चुकी है कि रंग लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते हैं। घर एक एेसी जगह है, जहां लोग अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बिताते हैं। कुछ खास रंग लोगों में खास इमोशन पैदा करते हैं, इसलिए घर में रंगों का संतुलन बनाना बहुत जरूरी है, ताकि आप एक ताजा और स्वस्थ जीवन जी सकें।

दिशाओं के मुताबिक आपके घर के रंग: A2Zवास्तु डॉट कॉम के संस्थापक और सीईओ विकाश सेठी ने कहा कि रंग दिशाओं और घर के मालिक की जन्मतिथि के मुताबिक तय किए जाने चाहिए। चूंकि हर दिशा का अपना एक खास रंग होता है, इसलिए हो सकता है, यह घर के मालिक से मेल न खाए। इसके लिए घर के मालिकों को वास्तु शास्त्र में लिखी बुनियादी गाइडलाइंस का पालन करना चाहिए।

नॉर्थ-ईस्ट- हल्का नीला।

पूर्व-सफेद या हल्का नीला।

दक्षिण-पूर्व- यह दिशा आग से जुड़ी है। इसलिए संतरी, गुलाबी या सिल्वर रंग ऊर्जा को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

उत्तर: हरा और पिस्ता ग्रीन।

उत्तर-पश्चिम: यह दिशा हवा से जुड़ी है। इसलिए सफेद, हल्का ग्रे और क्रीम रंग इसके लिए परफेक्ट है।

पश्चिम- यह जगह ‘वरुण’ (जल) की है, इसलिए नीला और सफेद सर्वश्रेष्ठ है।

दक्षिण-पश्चिम- आड़ू रंग, गीली मिट्टी का रंग, बिस्किट कलर और लाइट ब्राउन कलर।

दक्षिण-लाल और पीला।

सेठी ने कहा कि घर के मालिकों को काला, लाल और पिंक रंग चुनने से पहले अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि ये रंग हर किसी को सूट नहीं करते।

किस कमरे में हो कौन सा रंग:

विशेषज्ञों का कहना है कि आपके घर के हर कमरे में ऊर्जा, आकार और दिशा के मुताबिक रंगों की जरूरत होती है। एस्ट्रोन्यूमरोलॉजिस्ट गौरव मित्तल ने कहा, ”घर में रहने वाले लोगों को कमरों के रंग चुनते वक्त इन बातों का ध्यान रखना चाहिए”।

मास्टर बेडरूम: मास्टर बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और इसलिए इसमें नीला रंग करवाना चाहिए।

गेस्ट रूम/ड्राइंग रूम: घर में आए रिश्तेदारों के लिए गेस्ट रूम/ड्राइंग रूम उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। इसलिए इस दिशा में अगर गेस्ट रूम है तो उसमें सफेद रंग होना चाहिए।

बच्चों का कमरा: उत्तर-पश्चिम उन बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ दिशा है, जो बड़े हो गए हैं और पढ़ाई करने के लिए बाहर जाते हैं। चूंकि उत्तर-पश्चिम दिशा पर चंद्रमा का राज है, इसलिए इस दिशा में स्थित बच्चों के कमरे में सफेद रंग कराना चाहिए।

किचन: दक्षिण-पूर्व दिशा किचन के लिए बेस्ट है, इसलिए किचन की दीवारों का रंग संतरी या लाल होना चाहिए।

बाथरूम: उत्तर-पश्चिम दिशा बाथरूम के लिए सबसे सही है और इसमें सफेद रंग होना चाहिए।

हॉल: आदर्श तौर पर हॉल नॉर्थ-ईस्ट या नॉर्थ वेस्ट दिशा में होना चाहिए और इसमें पीला या सफेद रंग करवाना चाहिए।

घर के बाहर का रंग: घर के बाहर का रंग मालिकों के मुताबिक होना चाहिए। श्वेत-पीला, अॉफ वाइट, हल्का गुलाबी या संतरी रंग सभी राशि के लोगों के लिए अच्छा होता है।

घर में भूलकर भी न कराएं ये रंग:

एक्सपर्ट्स के मुताबिक लाइट रंग हमेशा अच्छे होते हैं। डार्क रंग जैसे लाल, ब्राउन, ग्रे और काला हर किसी को सूट नहीं आता। ये रंग अग्नि ग्रहों जैसे राहू, शनि, मंगल और सूर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। सेठी के मुताबिक लाल, गहरा पीला और काले रंग से परहेज करना चाहिए। आमतौर पर इन रंगों की तीव्रता काफी ज्यादा होती है। ये रंग आपके घर के एनर्जी पैटर्न को डिस्टर्ब कर सकते हैं।

कैसे बने वास्तु सम्मत मंदिर..?

कैसे बने वास्तु सम्मत मंदिर..????? विश्व में धर्म के प्रति आस्था रखने वाले देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। देवी-देवताओं की पूजा-प्रार्थना, आराधना करने के लिए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च, मठ इत्यादि धार्मिक स्थलों का निर्माण किया जाता है। प्राचीन काल से भारत में पूजा के लिए भव्य मंदिरों का निर्माण किया जाता रहा है। सदियों पहले निर्मित हुए कई प्राचीन मंदिरों के प्रति जनमानस में आज भी अनंत श्रद्धा है। इन मंदिरों की कृति समय के साथ-साथ बढ़ती ही जा रही है जैसे-जम्मू स्थित माता वैष्णों देवी का मंदिर, कोलकाता का कालीमाता का मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, तिरुपति बालाजी का मंदिर आदि। मंदिर का अर्थ :- मंदिर का अर्थ होता हैं मन से दूर कोई स्थान। मंदिर को हम द्वार भी कहते हैं। जैसे रामद्वारा, गुरुद्वारा आदि। मंदिर को आलय भी कह सकते हैं ‍जैसे ‍की शिवालय, जिनालय। लेकिन जब हम कहते हैं कि मन से दूर जो है वह मंदिर तो, उसके मायने बदल जाते हैं।द्वारा किसी भगवान, देवता या गुरु का होता है, आलय सिर्फ शिव का होता है और ‍मंदिर या स्तूप सिर्फ ध्यान-प्रार्थना के लिए होते हैं, लेकिन वर्तमान में उक्त सभी स्थान को मंदिर कहा जाता है जिसमें की किसी देव मूर्ति की पूजा होती है। ।।ॐ।। ।।यो भूतं च भव्या च सर्व यश्चादधि‍ति‍ष्ठाति‍। स्व।र्यस्यव च केवलं तस्मैि ज्येथष्ठारय ब्रह्मणे नम:।।-अथर्ववेद 10-8-1 भावार्थ :-जो भूत, भवि‍ष्य् और सबमें व्याकपक है, जो दि‍व्यचलोक का भी अधि‍ष्ठा ता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को प्रणाम है। वहीं हम सब के लिए प्रार्थनीय और वही हम सबके लिए पूज्जनीय है। परिभाषा :- मन से दूर रहकर निराकार ईश्वर की आराधना या ध्यान करने के स्थान को मंदिर कहते हैं। जिस तरह हम जूते उतारकर मंदिर में प्रवेश करते हैं उसी तरह मन और अहंकार को भी बाहर छोड़ दिया जाता है। जहाँ देवताओं की पूजा होती है उसे 'देवरा' या 'देव-स्थल' कहा जाता है। जहाँ पूजा होती है उसे पूजास्थल, जहाँ प्रार्थना होती है उसे प्रार्थनालय कहते हैं। वेदज्ञ मानते हैं कि भगवान प्रार्थना से प्रसन्न होते हैं पूजा से नहीं। वास्तु रचना :- प्राचीन काल से ही किसी भी धर्म के लोग सामूहिक रूप से एक ऐसे स्थान पर प्रार्थना करते रहे हैं, जहाँ पूर्ण रूप से ध्यान लगा सकें, मन एकाग्र हो पाए या ईश्वर के प्रति समर्पण भाव व्यक्त किया जाए। इसीलिए मंदिर निर्माण में वास्तु का बहुत ध्यान रखा जाता है। यदि हम भारत के प्राचीन मंदिरों पर नजर डाले तो पता चलता है कि सभी का वास्तुशील्प बहुत सुदृड़ था। जहाँ जाकर आज भी शांति मिलती है। यदि आप प्राचीनकाल के मंदिरों की रचना देखेंगे तो जानेंगे कि सभी कुछ-कुछ पिरामिडनुमा आकार के होते थे। शुरुआत से ही हमारे धर्मवेत्ताओं ने मंदिर की रचना पिरामिड आकार की ही सोची है। ऋषि-मुनियों की कुटिया भी उसी आकार की होती थी। हमारे प्राचीन मकानों की छतें भी कुछ इसी तरह की होती थी। बाद में रोमन, चीन, अरब और युनानी वास्तुकला के प्रभाव के चलते मंदिरों के वास्तु में परिवर्तन होता रहा। मंदिर पिरामिडनुमा और पूर्व, उत्तर या ईशानमुखी होता है। कई मंदिर पश्चिम, दक्षिण, आग्नेय या नैरत्यमुखी भी होते हैं, लेकिन क्या हम उन्हें मंदिर कह सकते हैं? वे या तो शिवालय होंगे या फिर समाधि-स्थल, शक्तिपीठ या अन्य कोई पूजा-स्थल। मंदिर के मुख्यत: उत्तर या ईशानमुखी होने के पीछे कारण यह कि ईशान से आने वाली उर्जा का प्रभाव ध्यान-प्रार्थना के लिए अति उत्तम माहौल निर्मित करता है। मंदिर पूर्वमुखी भी हो सकता हैं किंतु फिर उसके द्वार और गुंबद की रचना पर विशेष ध्यान दिया जाता है। प्राचीन मंदिर ध्यान या प्रार्थना के लिए होते थे। उन मंदिर के स्तंभों या दीवारों पर ही मूर्तियाँ आवेष्टित की जाती थी। मंदिरों में पूजा-पाठ नहीं होता था। यदि आप खजुराहो, कोणार्क या दक्षिण के प्राचीन मंदिरों की रचना देखेंगे तो जान जाएँगे कि मंदिर किस तरह के होते हैं। ध्यान या प्रार्थना करने वाली पूरी जमात जब खतम हो गई है तो इन जैसे मंदिरों पर पूजा-पाठ का प्रचलन बड़ा। पूजा-पाठ के प्रचलन से मध्यकाल के अंत में मनमाने मंदिर बने। मनमाने मंदिर से मनमानी पूजा-आरती आदि कर्मकांडों का जन्म हुआ जो वेदसम्मत नहीं माने जा सकते। नगरों के विकास के साथ-साथ मंदिरों का निर्माण होता रहता हैं। समय-समय पर पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार भी किया जाता है, उनका सौंदर्यीकरण किया जाता है। मंदिर और मठ चीन के बौध धर्म के वास्तु निर्माण में गिना जाता है ,मंदिर का निर्माण सब से पहले भारत में आरंभ हुआ था , चीन के उत्तरी वुई राज्यकाल में मंदिर का निर्माण जोरों पर चलने लगा । मंदिरों व मठों के विकास से चीन के सामंती समाज के सांस्कृतिक विकास तथा धार्मिक उत्पत्ति व ह्रास की झलक मिलती है , जिस का बड़ा एतिहासिक मूल्य और कला का महत्व होता है । प्राचीन काल में चीनी लोग वास्तु निर्माणों में यन-यांग वाले चीनी दर्शन शास्त्र के विश्व दृष्टिकोण पर विश्वास रखते थे और निर्माणों में संतुलन ,सममिति और स्थायित्व का सौंदर्य बौध मानते थे , इस से प्रस्थान हो कर चीन के बौध मंदिर निर्माणों में पूर्वज भक्ति तथा ब्रह्मण कर्म का विशिष्ट समावेश देखा जा सकता है , मंदिर की संरचना चतुर्कोण है , बींचोंबीच के धुरी पर मुख्य भवन का निर्माण है और दोनों तरफ समानांतर वास्तु निर्माण होते हैं , पूरे निर्माण समूह के संतुलित और सुव्यवस्थित होने पर बल दिया जाता है । इस के अलावा उद्यान सरीखा मंदिर भी चीन में देखने को बहुत पाता है । इन दोनों शैली के प्रयोग से चीन के मंदिर और मठ देखने में बड़ा भव्य और गांभीर्य लिए हुआ है , साथ ही उस में असाधारण प्राकृतिक सौंदर्य और गहन चेत भाव व्यक्त होता है । निर्माण संरचना पर प्राचीन काल के चीनी मंदिर और मठ के सामने बीचोंबीच मुख्य द्वार होता है , उस की दोनों तरफ घंटा टावर और ढोल टावर है , मुख्य द्वार पर दिगिश्वर भवन है , मुख्य द्वार के भीतर चार वज्रधर मुर्तियां विराजमान है , मंदिर के भीतर क्रमशः महावीर भवन तथा सूत्र भंडारण भवन आता है , उन के दोनों तरफ भिक्षु निवास और भोजनालय है । महावीर भवन बौध मंदिर का सब से अहम और सब से बड़ा भवन निर्माण है , भवन में महात्मा बुद्ध की प्रतीमा विराजमान है । स्वी और थांग राज्य काल से पहले चीन के मंदिरों में मुख्य दरवाजे के बाहर या प्रांगन के भीतर स्तूप बनाये गए थे , उस के पश्चात मंदिर के भीतर बुद्ध भवन स्थापित किया गया और स्तूप अलग जगह बनाये जाने लगा । यदि यह निर्माण या जीर्णोद्धार वास्तु अनुरूप होता है, तो भक्तों का उस मंदिर के प्रति आकर्षण बना रहता है। जहां भक्तों की भीड़ पूजा-प्रार्थना करने के लिए प्रतिदिन आती रहती है। भक्त मन्नतें मांगते हैं। ऐसे मंदिरों में चढ़ावा भी खूब आता है। पर इसके विपरीत मंदिरों का निर्माण या पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करते समय वास्तु सिद्धांतों की अवहेलना हो जाती है। तो ऐसे मंदिरों के प्रति भक्तों का आकर्षण कम हो जाता है। वहां दर्शन-पूजन करने लोग कम आते हैं, और भक्तों के मन में विशेष श्रद्धा भी नहीं होती है। ''विश्वकर्मा प्रकाश'' और ''समरंगन सूत्रधार'' वास्तुशास्त्र के प्रमुख प्राचीन ग्रंथ हैं। इन वास्तु ग्रंथों के अलावा भी हमारे कई प्राचीन ग्रंथों जैसे-रामायण, महाभारत, मत्स्य पुराण इत्यादि में वास्तु के बहुमूल्य सिद्धांत बिखरे पड़े हैं। जहां धर्म के माध्यम से इस शास्त्र के लोकोपयोगी सिद्धांतों को व्यवहार में लाने की पुष्टि होती है। बाल्मिकी रामायण में भगवान श्री राम के मुख से वास्तु संबंधी कुछ महत्वपूर्ण सूत्र कहलाए गए हैं। किष्किंधा कांड में जब श्रीराम व लक्ष्मण बाली वध के उपरांत प्रस्रवण पर्वत पर निवास के लिए अनुकूल स्थान की तलाश कर रहे थे, तब पर्वत की सुंदरता का वर्णन करते हुए एक स्थान पर रुककर वे अपने अनुज लक्ष्मण से कहते है-''लक्ष्मण, यह स्थान देखो इस स्थान का ईशान नीचा व पश्चिम ऊंचा है यहां पर पर्णकुटी बनाना श्रेष्ठ रहेगा। यह स्थान सिद्धि दायक एवं विजय दिलाने वाला है।'' सभी ग्रंथों में ऐसी भूमि की प्रशंसा मिलती हैं जिसका नैऋत्य कोण ऊंचा एवं ईशान कोण नीचा हो। जैसे-भरत जब अयोध्या लौटकर आए तो उन्हें ज्ञात हुआ कि प्रजा का सोचना है कि, श्रीराम को षड्यंत्र करके भरत जी ने वनवास कराया है तब भरत दुःखी होकर रामायण के एक प्रसंग में बताते हैं-''सूर्य की ओर अभिमुख या अनभिमुख होकर मैं मल-विसर्जन करने वाला मूर्ख नहीं हूं।'' यह वास्तु सिद्धांत है कि, कभी भी पूर्व की तरफ मुंह या पीठ करके मल विसर्जन नहीं करना चाहिए। महाभारत के युद्ध का कारण इन्द्रप्रस्थ के बीचोंबीच बनवाया गया दृष्टि भ्रमित करने वाला पानी का कुंड ही था। इसलिए कोई भी भवन चाहे वह कोई धार्मिक स्थल जैसे-मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, मठ इत्यादि ही क्यों न हों, निर्माण करते समय वास्तु सिद्धांतो का पालन अवश्य करना चाहिए। मंदिर ऐसी भूमि पर बनाएं जिसके उत्तर-पूर्व में तालाब, नदी, सरोवर, झरना इत्यादि हों और दक्षिण व पश्चिम में ऊंचे-ऊंचे पर्वत व पहाडि़यां हों। ऐसे स्थान पर बना मंदिर वैभव एवं प्रसिद्धि पाता है। जहां मंदिर का निर्माण करना हो उस भूमि का आकार वर्गाकार या आयताकार होना चाहिए। अनियमित आकार नहीं होना चाहिए। भूमि की दिशाएं ध्रुव तारे की सीध में हों अर्थात् भूमि की चारों दिशाएं समान्तर हों, कोने में न हों। मंदिर की भूमि की उत्तर, पूर्व एवं ईशान दिशा का दबा, कटा एवं गोल होना बहुत अशुभ होता है, विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। इसके विपरीत मंदिर की भूमि का इन दिशाओं का बढ़ा होना बहुत शुभ होता है। यदि यह दिशाएं दबी, कटी या गोल हों, तो इन्हें शीघ्र बढ़ाकर या घटाकर समकोण करके इसके अशुभ परिणामों से बचना चाहिए। भूमि का दक्षिण पश्चिम कोना 900 का होना चाहिए। गर्भ गृह के अंदर घंटा, लाउडस्पीकर इत्यादि भी नहीं लगाना चाहिए। मंदिर का घंटा सभामंडप की सीढि़यों के पास अंदर और लाउडस्पीकर सभा मंडप की छत पर लगाया जा सकता है। मंदिर के पूर्व में रोशनदान होना शुभ होता है जहां से सुबह के सूर्य की किरणें मूर्ति पर बिना किसी रुकावट के पड़े। मंदिर के गर्भगृह के पीछे कोई कमरा न हो। मंदिर की परिक्रमा करने के लिए पर्याप्त स्थान छोड़ना चाहिए ताकि भक्तों को मंदिर की परिक्रमा करने में कोई असुविधा न हो। दक्षिण या पश्चिम दिशा में स्थित गर्भ गृह वाले मंदिर के गर्भ गृह की तुलना में मंदिर प्रांगण के अन्य सभी की छत की ऊंचाई कम होनी चाहिए। दीप स्तंभ, अग्नि कुंड, यज्ञ कुंड इत्यादि आग्नेय कोण में होने चाहिए। प्रसाद, लंगर, भंडारा इत्यादि बनाने के लिए रसोईघर की व्यवस्था मंदिर प्रांगण के आग्नेय कोण में करनी चाहिए। मंदिर के गर्भ गृह में कभी भी नारियल नहीं फोड़ना चाहिए। नारियल फोड़ने की मशीन या शिला वायव्य कोण में रखने चाहिए। प्रसाद वितरण का कार्य मंदिर के ईशान कोण में होना चाहिए। मंदिर की दान पेटी उत्तर दिशा इस प्रकार रखनी चाहिए कि वह उत्तर दिशा की ओर ही खुले। मंदिर में काम आने वाले वाद्य यंत्र जैसे-ढोलक, तबले, हारमोनियम इत्यादि रखने का कमरा वायव्य कोण में बनाना चाहिए। मंदिर में भक्तों के हाथ, पैर व मुंह धोने एवं पीने के पानी की व्यवस्था मन्दिर प्रांगण के उत्तर या पूर्व दिशा में करनी चाहिए। मंदिर प्रांगण में भक्तों के बैठने के लिए बेंच दक्षिण दिशा में बनानी चाहिए। मंदिर में आने वाले भक्तों के जूते-चप्पल रखने का स्टैंड मंदिर प्रांगण में उत्तर दिशा में बनाना चाहिए। मंदिर प्रांगण में जलकुंड का निर्माण उत्तर या पूर्व दिशा में करना चाहिए। कुआं या बोर ईशान कोण में होना चाहिए। इसके विपरीत अन्य किसी भी दिशा में इनका होना अशुभ होता है। मंदिर के चारों ओर कम्पाउंड वाल अवश्य बनानी चाहिए। जहां प्रवेश द्वार पूर्व या पूर्व ईशान में होना सर्वोत्तम होता है। उत्तर या उत्तर ईशान में होना उत्तम होता है। यदि इन दो दिशाओं में द्वार रखने की स्थिति न हो तो वैकल्पिक तौर पर दक्षिण आग्नेय या पश्चिम वायव्य में भी रख सकते हैं। मंदिर के चारों ओर प्रवेश द्वार होना शुभ माना जाता है। प्रमुख प्रवेश द्वार अन्य द्वारों से ऊंचा, बड़ा एवं सुंदर बनाना चाहिए। किसी भी प्रवेश द्वार के सामने किसी प्रकार का वेध नहीं होना चाहिए-

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